वाराणसी (ब्यूरो)। काशी ढिंग मांडूर स्थाना, शुद्र वरन करत गुजराना. मांडुर नगर में लीन अवतारा, रविदास शुभ नाम हमारा. यह शब्द अक्सर संत रविदास के मुख से निकलता था. संत रविदास का जहां जन्म हुआ, उस जगह का नाम मांडूर नगर है. वर्तमान में उसे लहरतारा नई बस्ती, मंडुवाडीह के रूप में जाना जाता है. जन्मस्थान मांडूर नगर में संत रविदास जयंती की तैयारी जबर्दस्त शुरू हो गई है. रंग-रोगन के बाद मंदिर को इलेक्ट्रिक लाइट से संजाया गया है. मंदिर में लगातार कीर्तन और प्रवचन का कार्यक्रम भी चल रहा है. सेवादारों के अलावा पंजाब, हरियाणा से आने वाले अनुयायियों को लंगर भी कराया जा रहा है. 5 फरवरी को इस मंदिर में विशेष आयोजन होंगे.
मांडूर भी आते रविदास के अनुयायी
संत रविदास की जयंती के मौके पर देश के विभिन्न हिस्से से बड़ी संख्या में रविदास के अनुयायी वाराणसी आते हैं. ये सीरगोर्वधन और मांडूर नगर यानी लहरतारा नई बस्ती भी जाते हैं. अधिकतर अनुयायी दोनों स्थल को पावन व पर्वित मानते हैं. एक फरवरी से हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से बड़ी संख्या में अनुयायियों के आने का सिलसिला शुरू हो गया है.
सेवादारों के आने का सिलसिला जारी
संत रविदास गुरु चरणों की रज पाने के लिए सेवादारों के आने का सिलसिला अनवरत जारी है. श्रमसाधक संत रविदास की जन्मस्थली पर भक्ति भाव के रंग अब चटख होने लगे हैं. मंदिर में सेवा का सिलसिला जारी है. संत गुरु रविदास की जयंती में शामिल होने के लिए पंजाब हरियाणा के विभिन्न शहरों से सेवादारों व संगत के आने का सिलसिला गुरुवार को भी बना रहा है. मंदिर के पास खाली मैदान में मेला लगता है, जहां जयंती के दिन जबर्दस्त भीड़भाड़ रहती. लंगर हॉल में भक्तों की अटूट कतार रहती है.
2023-02-02T18:31:05Z dg43tfdfdgfd