CHAITRA PURNIMA VRAT KATHA: आज चैत्र पूर्णिमा के दिन पढ़ें ये व्रत कथा, पूरी होगी हर मनोकामना

Chaitra Purnima Vrat Katha: हिंदी कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि पूर्णिमा​ तिथि होती है और इस दिन व्रत रखने की परंपरा है. पंचांग के अनुसार आज यानि 23 अप्रैल 2024, मंगलवार को चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि है और इसे चैत्र पूर्णिमा कहा जाता है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है. साथ ही स्नान के बाद दान करना भी शुभ माना गया है. चैत्र पूर्णिमा के दिन भगवान श्री हरि विष्णु के सत्यनारायण स्वरूप का पूजन किया जाता है. साथ ही मां लक्ष्मी की भी उपासना की जाती है. इस दिन व्रत रख रहे हैं तो पूजा के बाद व्रत कथा अवश्य पढ़ें.

चैत्र पूर्णिमा व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार काशीपुर नगर में एक गरीब ब्राह्मण रहा करता था जो भिक्षा मांगकर अपना जीवन व्यतीत कर रहा था. एक दिन उसे भिक्षा मांगते देखकर भगवान विष्णु ने स्वयं एक बूढ़े ब्राह्मण के रूप लेकर उस गरीब ब्राह्मण के पास गए और कहने लगे, ‘हे विप्रे! श्री सत्यनारायण भगवान मनोवांछित फल देने वाले हैं. तुम उनका व्रत-पूजन करो, इस व्रत को रखने से मुनष्य सब प्रकार के दुखों से मुक्त हो जाता है.' साथ ही भगवान विष्णु ने ब्राह्मण से कहा कि सत्यनारायण भगवान की पूजा करने और व्रत रखने के लिए पूर्णिमा तिथि शुभ होती है. इस उपवास से केवल भोजन न करना ही व्रत नहीं होता, बल्कि इस दिन मनुष्य को अपने हृदय में सुविचार रखने चाहिए. उपवास के समय हृदय में यह धारणा होनी चाहिए कि आज श्री सत्यनारायण भगवान हमारे पास ही विराजमान हैं. अत: अंदर व बाहर शुचिता बनाए रखनी चाहिए और श्रद्धा-विश्वासपूर्वक भगवान का पूजन कर उनकी मंगलमयी कथा का श्रवण करना चाहिए.

श्री सत्यनारायण की कथा के अनुसार पूर्णिमा तिथि के दिन व्रत-पूजन करना मानव जाति का समान अधिकार है. चाहे वह निर्धन, धनवान, राजा हो या व्यवसायी, ब्राह्मण हो या अन्य वर्ग, स्त्री हो या पुरुष. यही स्पष्ट करने के लिए इस कथा में निर्धन ब्राह्मण, गरीब लकड़हारा, राजा उल्कामुख, धनवान व्यवसायी, साधु वैश्य, उसकी पत्नी लीलावती, पुत्री कलावती, राजा तुंगध्वज एवं गोपगणों की कथा का समावेश किया गया है. जिस तरह लकड़हारा, गरीब ब्राह्मण, उल्कामुख, गोपगणों ने सुना कि यह व्रत सुख, सौभाग्य, संपत्ति सब कुछ देने वाला है तो सुनते ही श्रद्धा, भक्ति तथा प्रेम के साथ सत्यव्रत का आचरण करने में लग गए और फलस्वरूप सुख भोगकर परलोक में मोक्ष के अधिकारी हुए.

भगवान सत्यनारायण की कथा हमेशा सम्पूर्ण सुननी चाहिए और लिया गया संकल्प पूरा करना चाहिए. एक साधु वैश्य ने भी यही प्रसंग राजा उल्कामुख से सुना, किंतु उसका विश्वास अधूरा था और श्रद्धा में कमी होने के कारण उसने मन में प्रण लिया कि संतान प्राप्ति पर सत्यव्रत-पूजन करूंगा. सत्यनारायण भगवान की पूजा के प्रभाव से उसके घर एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया. पत्नी ने उसे व्रत की याद दिलाई तो उसने कहा कि कन्या के विवाह के समय करेंगे. समय आने पर कन्या का विवाह भी हो गया किंतु उस वैश्य ने व्रत नहीं किया. फिर एक साहूकार अपने दामाद को लेकर व्यापार के लिए शहर चला गया. वहां उन दोनों को चोरी के आरोप में राजा चन्द्रकेतु ने कारागार में डाल दिया. इतना ही नहीं, साहूकार के अपने घर में भी चोरी हो गई और पत्नी लीलावती व पुत्री कलावती भिक्षावृत्ति के लिए विवश हो गई.

एक दिन कलावती ने किसी के घर श्री सत्यनारायण का पूजन होते देखा और घर आकर मां को प्रसाद दिया. तब मां ने अगले दिन श्रद्धा से व्रत-पूजन कर भगवान से पति और दामाद के शीघ्र वापिस आने का वरदान मांगा. श्री हरि प्रसन्न हो गए और स्वप्न में राजा को कह दिया कि वह दोनों बंदियों को छोड़ दे, क्योंकि वह निर्दोष हैं. राजा ने अगली सुबह उनका धन-धान्य तथा प्रचुर द्रव्य देकर उन्हें विदा किया. घर आकर पूर्णिमा के ​दिन साहूकार ने विधि-विधान से पूजन व व्रत किया. इतना ही नहीं, जीवनभर सत्यव्रत का आयोजन करता रहा. जिसके प्रभाव से सभी सांसारिक सुखों को भोगने के बाद उसे मोक्ष प्राप्त हुआ.

डिस्क्लेमर: यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं. India.Com इसकी पुष्टि नहीं करता. इसके लिए किसी एक्सपर्ट की सलाह अवश्य लें.

2024-04-23T03:36:02Z dg43tfdfdgfd