KHEL KHEL MEIN INDORE: एक धक्का और दो...का नारा हो रहा फलीभूत

Khel Khel Mein खेल-खेल में..., कपीश दुबे

भाजपा की राजनीति के फलने-फूलने में ‘एक धक्का और दो...’ के नारे की अहम भूमिका थी। अब भगवा पार्टी कांग्रेस की नींव हिलाने में जुटी है। ब्राह्मण नेता संजय शुक्ला को तोड़कर भाजपा कांग्रेस को बड़ा झटका दे चुकी है। अब पूर्व विधायक शुक्ला कांग्रेस को चुनाव से पहले एक और ‘धक्का’ देने की तैयारी में हैं। शुक्ला और पूर्व विधायक विशाल पटेल बड़ा जलसा करने जा रहे हैं, जिसमें अपने समर्थकों को भगवा दुपट्टा ओढ़ाएंगे। कांग्रेस के पास पहले ही कार्यकर्ताओं को टोटा है और जो बचे हैं उसमें से भी बड़े हिस्से में शुक्ला सेंध लगाने जा रहे हैं। कांग्रेसियों को फोन घनघनाए जा रहे हैं। चिंता यह है कि पता नहीं अबकी बार कौन-कौन ‘हाथ’ छोड़कर चला जाए। एक-दूसरे से पूछा जा रहा है कि क्या तुम जा रहे हो...।

कांग्रेस की बैठक... कांग्रेसियों की अनदेखी

कांग्रेस के पास वैसे ही नेता और कार्यकर्ता कम बचे हैं। जो हैं वे भी तवज्जो न मिलने से नाराज हैं। चुनाव सिर पर हैं और पार्टी अंदरूनी गुटबाजी से ही नहीं उबर पा रही। गत दिनों प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के निवास पर हुई बैठक में चुनिंदा नेताओं को बुलावा भेजा गया। कई पुराने नाम थे जो अनदेखी से खफा हो गए। इनमें कार्यवाहक शहर अध्यक्ष से लेकर बीते दौर के कई नेता शामिल थे, जो दशकों से पार्टी का झंडा उठा रहे हैं। जब ये सब बैठक में पहुंचे तो माहौल गर्म हो गया। एक नेता ने तो नाराजगी में अपने पदों से इस्तीफा देने बात कह दी। चुनावी रणनीति छोड़कर इनकी मान-बनौव्वल का सिलसिला चल पड़ा। इससे पहले भी पार्टी प्रत्याशी के समर्थकों द्वारा लगाए पोस्टरों में शहर और जिला अध्यक्षों का फोटो ही नहीं था। इसे लेकर दोनों ने नाराजगी जताई तो आनन-फानन में नए पोस्टर बनवाए गए।

महू की माया समझ न आए...

राजनीति में बोल के पहले तोल-मोल का बड़ा महत्व है। भाजपा के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय के ‘मजाक’ में बोली लाइनों के बाद मानों शंकर लालवानी की लाटरी सी लग गई थी। फिर महू के कद्दावर नेता अंतर सिंह दरबार ने जब भगवा दुपट्टा ओढ़ा तो विजयवर्गीय बोल पड़े की शुक्ला (रामकिशोर) भी आ रहे थे, लेकिन उषा तैयार नहीं थीं। मगर दीदी ने भी नहले पर दहला मारने के प्रयास में शुक्ला की खुद ही इंट्री करा दी। यहां तक तो ठीक था, लेकिन शुक्ला का भी शब्दों पर नियंत्रण उतना सही नहीं है, जितने की राजनीति में गुजारिश होती है। वे बोल पड़े कि मैं तो दीदी के कहने से ही चुनाव लड़ा था। इससे लगा कि महू की राजनीति की माया समझना उतना आासन नहीं, जितनी नजर आती है।

शहर में अधिकारियों की सरकार

कहने को निर्वाचन प्रक्रिया लोकतंत्र का उत्सव है। जनता अपनी सरकार चुनती है, लेकिन हकीकत यह है कि ‘सरकार’ चुने जाने तक सरकार अधिकारियों की होती है। जब से आचार संहिता लगती है अफसरों का राज है और शहर में अचानक छापों की संख्या बढ़ गई है। होटल हो या दुकानों या कोई कंपनी हो, अधिकारियों की नजर से कोई नहीं बच रहा। जरा गलती की नहीं, तत्काल छापा और सील करने में देर नहीं होती। चुनावी ड्यूटी से बचने के लिए सभी के अपने-अपने तर्क होते हैं, लेकिन छापों के लिए ऊर्जा मिल ही जाती है। कहने को चुनावी जिम्मेदारी के लिए महकमा व्यस्त हो जाता है, लेकिन छापों के लिए समय निकाल ही लेते हैं। जनता को लग रहा है कि अब काम हो रहा है, लेकिन व्यापारियों की अपनी परेशानी है। फिलहाल तो सुनवाई होगी भी नहीं क्योंकि अभी ‘भिया’ की चलेगी नहीं।

2024-04-17T08:53:57Z dg43tfdfdgfd