Hindi Katha: एक समय की बात है, प्रतिष्ठानपुर में चंद्रवंशी राजा शूरसेन राज्य करते थे। वे बड़े वीर, धर्मात्मा और गुणवान थे। उन्होंने अपनी पत्नी के साथ अनेक यज्ञ किए, जिनके फलस्वरूप उनके घर एक पुत्र का जन्म हुआ। किंतु वह भयंकर आकार वाला एक सर्प था। शूरसेन ने उसे सभी की दृष्टि से छिपाकर रखा था । अत: किसी को ज्ञात नहीं हुआ कि राजा का पुत्र सर्प है। उसे देखकर राजा-रानी को बड़ा दुःख होता था। कहने को वह एक सर्प था, लेकिन मनुष्यों के समान बातें करता था । पितृ – स्नेहवश शूरसेन ने एक ब्राह्मण को बुलवाकर उसके यज्ञोपवीत संस्कार आदि सम्पन्न करवाए।
वेदाध्ययन के बाद उन्हें उसके विवाह की चिंता सताने लगी। एक दिन उन्होंने अपने वृद्ध पुरोहित को सारी बात बता दी । तब पुरोहित बोला “राजन ! पूर्व देश में विजय नामक एक राजा हैं। उनकी पुत्री भोगवती युवराज के लिए सुयोग्य पत्नी होगी। महाराज ! आप निश्चित रहें। मैं ऐसा उपाय करूँगा जिससे कि उसका विवाह राजकुमार के साथ हो जाएगा। आप मुझे कार्य-सिद्धि के लिए जाने की आज्ञा दें । ‘
शूरसेन ने वस्त्र, आभूषण आदि भेंट देकर पुरोहित को जाने की आज्ञा दे दी। वह एक विशाल सेना लेकर शीघ्र ही पूर्व देश जा पहुँचा। उसने मधुर वचनों से राजा विजय को प्रसन्न कर लिया।
जब विजय अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार के साथ करने के लिए सहमत हो गए, तब पुरोहित विनम्रतापूर्वक बोला – “राजन ! महाराज शूरसेन के पुत्र नाग बड़े बुद्धिमान और श्रेष्ठ गुणों से युक्त हैं। वे स्वयं यहाँ नहीं आना चाहते, इसलिए यह विवाह शास्त्र-विधि द्वारा हो तो अच्छा है। “
उसकी बात को सत्य मानकर विजय ने भोगवती का विवाह शास्त्र – विधि द्वारा कर दिया। तत्पश्चात् पुरोहित ने कन्या के साथ वहाँ से विदा ली और प्रतिष्ठानपुर लौट गया।
जब भोगवती को ज्ञात हुआ कि उसका पति वास्तव में एक सर्प है तो भी वह दुखी नहीं हुई और प्रसन्नतापूर्वक पति के कक्ष में पहुँची। उसने देखा कि पलंग पर एक भयंकर सर्प विराजमान है । भोगवती ने उसे प्रणाम किया।
तब वह सर्प बोला “देवी ! मैं शेषनाग का पुत्र और भगवान् महादेव के हाथ में कंगन की भाँति लिपटा रहने वाला सर्प हूँ। एक दिन उनकी किसी बात पर मुझे हँसी आ गई। तब उन्होंने क्रोधित होकर मुझे मनुष्य योनि में सर्प-रूप में जन्म लेने का शाप दे दिया। किंतु जब उनका क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने शाप – मुक्ति के लिए मुझे पत्नी सहित गौतमी गंगा पर उनका पूजन करने का परामर्श दिया। अतः तुम मेरे साथ माँ गौतमी के तट पर चल कर भगवान् शिव की आराधना करो। इससे मैं शाप मुक्त होकर तुम्हारे साथ शिव – लोक चला जाऊँगा।
तब भोगवती उसे साथ लेकर गोदावरी के तट पर आई और महादेव की स्थापना कर उनका पूजन किया। इसके फलस्वरूप उस सर्प को दिव्य – रूप प्राप्त हो गया। तभी से वह स्थान नाग तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हो गया । वहाँ भोगवती द्वारा स्थापित भगवान् शिव नागेश्वर कहलाए ।
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2025-06-11T00:02:25Z