Hindi Love Story: “मुझे उस दुनिया से क़तई इश्क़ नहीं, जिसकी तस्वीरों में मेरे पसीने का रंग न लहराता हो।” उसने सख़्ती से कहा।
मैं उसे एक पंचायती ज़िंदगी में बने रहने और ख़्वाबों को जीने की नाकाम सलाह कई दफ़े दे चुका था। यूँ मुझे पता था, वह हमेशा मेरे साथ जीना तो ऐसे ही चाहती थी; पर उसके ड्राइंग रूम, बेडरूम, किचन में मेरी कोई स्थाई जगह नहीं थी। एक जंगल रेसॉर्ट के कैम्पस में गुलमोहर के सूखे पेड़ के नीचे, चाँदनी से नहाए हम, टेक लगाए बैठे थे। गज़ब की शांति के बीच झिंगुरो की हल्की आवाज़ें जंगल में होने का औरा बनाती थीं।
“मैंने कब कहा कि तुम मेरी दुनिया में चले आओ। मेरी दुनिया तुम्हारे बग़ैर अधूरी रह जाएगी, हम उसे मिलकर क्यों नहीं बना सकते?” मैंने कहा।
“डीयर, तुम जानते हो न मुझे। मुझे अमीर बाप-भाई या पति के जरिए मुहय्या कराई गई तमाशखोर सशर्त आज़ादी और उससे पैदा हुए सुख, सम्मान, ओहदे और औकात से घिन आती है। मैं दूसरी लड़कियों की तरह नहीं और सहूलियत के बदले बिकने को सिरे से खारिज करती हूँ।” मैं बहुत बार उसके क़ातिलाना लफ़्ज़ों के इंतेखाब से सहम जाता हूँ।
“तुम्हें हमेशा यह ही क्यों लगता है कि, मैं तुम्हें बाँध लेना चाहता हूँ?”
“मुझे नहीं लगता तुम यह सोच भी पाते होगे कि, तुम कभी मुझे बाँध पाओगे। मेरी ज़िंदगी में आज सबसे ज़्यादा किसी बात की क़ीमत है, तो तुम्हारे साथ बिताए एक-एक पल की। पत्थर होकर मेरा जीना आसान बनाया है मैंने, इंसान कहीं बाकी रह गया है तो दो-चार लोगों के लिए ही। इंसान होने के लिए मुझे सामने वाले की सूरत पहचाननी होती है।” थोड़ा रुक कर उसने आगे कहा-“सच कहूँ तो मैं तुम्हें मेरी ओर से कभी बेपरवाह नहीं देखना चाहती; साथ होने और रिश्तों को निभाने की बेवकूफ़ी भरी दौड़ में हादसों की आहट से ही मैं सहम जाती हूँ। मैं नहीं चाहती तुम्हारे लिए तड़प और अपनी बेचैनियाँ खो दूँ। एक ही तो ज़िंदगी है, जी लेने दो मुझे मेरी नासमझी और ज़िंदा इश्क़ में।”
“तुम्हारी दुनिया से अलग बसाहट वाली दुनिया कहाँ से लाऊँ, जरा यह बता दो मुझे?”
“डियर! तुम्हारी दुनिया से मैं अलग नहीं होना चाहती। लेकिन बेड़ियों से मुझे बेइंतहा नफ़रत है। मोहब्बत को घिनपने में नहीं बदलना चाहती। कितना झेल लोगे मुझे? एक-एक दिन उस दिन मरूँगी, जिस दिन मेरे या तुम्हारे अकारण ख़राब मूड के हम शिकार होंगे। कितना भी कह लो तुम, एक डर हम दोनों में ज़िंदा रहता है कि हमें एक-दूसरे की क़द्र करनी ही होगी; या अलग होने की राह ज्यादा रौनक से भरी लगेगी।” वह जब अलग होने की बात कहती है, मेरी रूह थरथरा जाती है। या शायद मुझे ऐसा लगने लगा था कि, किसी और से अब इस दर्जे का इश्क़ करने की ताक़त नहीं रही मुझमें।
यूँ तो मुझे रोमान्टिक हो सकने वाले लम्हों में इस तरह विचारशील होना क़त्ल के संगीन जुर्म की तरह लगता है, दिल-दिमाग पर काबू रखना और भी घुटन से भर देता है। उसकी शांति कितनी ही सहन की हो मैंने, पर मैं उनका अभ्यासी कभी नहीं हो सकूंगा। मेरी छोटी चुप्पी उसे खल जाती है, और इसी चुप्पी ने शायद उसे नज़ीर बनारसी की याद दिलाई हो-
“इस पुरानी बेवफ़ा दुनिया का रोना कब तलक,
आइये मिलजुल के इक दुनिया नयी पैदा करें…”
अचानक ही अपनी टेक हटाकर वह एक ओर हो गई। अपने लुढ़के हुए होठों और मन पर मुझे गहरी लाल लिपिस्टक की मरहम, ठंडाई की तरह मालूम हुई।
ये कहानी ‘हंड्रेड डेट्स ‘ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Hundred dates (हंड्रेड डेट्स)
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2025-07-06T13:06:25Z