Shlokas of Bhagavad Gita: जीवन में व्यक्ति कई बार असफलताओं का सामना करता है। इसके जरिए वह अपने मार्ग में सुधार और सीमाओं को समझकर आगे बढ़ता है। इसके अलावा असफलता इंसान को धैर्यवान भी बनाती है जिससे सफलता का मार्ग और भी खुबसूरत बन जाता है। हालांकि फिर भी मन नकारात्मकता और दिमाग तनाव से भर जाता है। श्रीकृष्ण के मुताबिक सुख और दुख जीवन के अभिन्न अंग हैं, जो आते-जाते रहते हैं। इसलिए "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" इसका अर्थ है कि "कर्म करो फल की चिंता मत करो"
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते। सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
"त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः। कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्॥"
श्री कृष्ण के अनुसार कामना, क्रोध और लोभ यह तीनों ही नरक के द्वार हैं। इसलिए इनसे दूरी बनाकर रखें।
श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:। ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥
गीता के इस श्लोक का अर्थ है कि जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों पर विश्वास और नियंत्रण रखता है वह अपनी इच्छा से ज्ञान प्राप्त कर लेता है।
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:। स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
श्री कृष्ण के मुताबिक क्रोध व्यक्ति का दिल और दिमाग दोनों नष्ट करता है, क्योंकि जब भी क्रोध आता है तो सभी तर्क खो जाते हैं। इसलिए समय कैसा भी हो मन को शांत रखें और क्रोध से दूर रहें।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण):
ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।