देहरादून की आपकी कई यादें जुड़ी हैं। आप यहां अपने दोस्त की पासिंग आउट परेड देखने आए थे। आपने एसएसबी की परीक्षा के जरिए वह सपना भी संजोया कि एक बार क्लियर हो जाए तो इंडियन आर्मी का ऑफिसर बन जाऊं। जब वह सपना टूटा तो क्या टूटा?
जयदीप अहलावत ने कहा, 'पहला रिश्ता तो देहरादून से वही बना था। 12वीं क्लास में। एसएसबी क्लियर न होना, सबसे पहले तो वह सच्चाई टकराती है। लेकिन फिर आप कोई न कोई रास्ता खोजते हो। जीवन कभी रुकता नहीं है। 19-20 साल का एक लड़का उस वक्त फेलियर जो महसूस कर सकता था और फिर उससे आगे बढ़ना'।
मुंबई में जब एक कमरे के अंदर छह लोग इकट्ठे रहते थे। तब क्या नींद आती थी या आंखों में सपने पलते थे। किस दौर से गुजरते थे?
एक्टर ने कहा, 'नींद तो कहां...नींद के लिए सोने के लिए जगह भी तो होनी चाहिए। लेकिन, मैं एक बात बोलता आया हूं कि स्ट्रगल बहुत सब्जेक्टिव मामला है। आप अभिनेता बनने मुंबई गए हो, जीवन में कठिनाइयां हैं वो अलग बात है। हमने जितने साल संघर्ष में गुजारे, उसमें सिर्फ एक ही कमी थी पैसे की। बाकी कोई कमी नहीं थी। कठिनाई थीं, वो सबके जीवन में होती हैं। जो हो रहा था अपने मन से हो रहा था'।
जब आप छह दोस्तों के साथ रहते थे। क्या किसी ने कहा था कि जयदीप याद रखना आप एक दिन बहुत बड़े कलाकार बनोगे।
एक्टर ने कहा, 'मेरे हरियाणा के एक दोस्त हैं अल्केश, उन्होंने पहली बार कहा कि तुझे नहीं पता कि तू एक्टर है। मैंने तब नया-नया थिएटर करना शुरू किया। कई और दोस्त हैं, दोस्तों का भरोसा तो होता है कि हां हो जाएगा'।
आप ऑडिशन देने जाते थे तो कभी ऐसा होता था कि चलो चलते हैं। काम बना तो बना, नहीं तो कुछ और काम निकलेगा?
एक्टर ने कहा, 'कोई और काम क्या निकलेगा। ऑडिशन में दो ही चीजें होती हैं या तो काम मिलेगा या नहीं मिलेगा। ऐसा बहुत होता है। सैंकड़ों लोग ऑडिशन देते हैं। तब एक का निकल पाता है। जीवन का सबसे मुश्किल दौर वह होता है, जब आपको शुरुआती काम मिलने की जद्दोजहद होती है। कोई रेफ्रेंस नहीं होता कि आप अच्छे एक्टर हो या नहीं। वह मुश्किल दौर होता है। लेकिन, ऐसा नहीं कि नहीं हुआ तो क्या हुआ। फिर एक दौर आएगा। एक दिन का गुस्सा, एक दिन की असफलता और उदासी अगले दिन नहीं जानी चाहिए'।
आप कॉलेज में थे। शनिवार-रविवार को स्कूटर से घर आते थे। आकर अपने पिताजी से गले लगते थे। आज की पीढ़ी में भी पिता को गले लगते हुए झिझक होती है। आपने वह बैरियर कैसे तोड़ा?
इस पर जयदीप ने कहा, 'यह सबके साथ है। हमारी पूरी पीढ़ी ने शायद यह फील किया होगा कि पिताओं ने कभी गले नहीं लगाया। पता नहीं उनके डीएनए में नहीं है यह चीज। लेकिन, आप भी सोचते हो कि ऐसा क्या है जो मां इतने प्यार से बात करती है और पिता वहीं तीन-चार सवाल करते हैं कि पढ़ाई ठीक चल रही है या कुछ ऐसे ही। एक बड़ी वजह यह रही कि साहित्य पढ़ने की जो मेरी आदत थी तो एक टाइम बाद अहसास हुआ कि यह जिम्मेदारी सिर्फ इनकी नहीं है। आपकी भी हो सकती है। आप क्यों उस बैरियर को नहीं तोड़ सकते। शायद पिता के पिता ने भी उन्हें कभी गले नहीं लगाया होगा। उन्हें भी वह महसूस हुआ। मुझे भी लगा कि इसे तोड़ना पड़ेगा'।
आप जब पहली बार पिता से गले लगे, तो उनका क्या रिएक्शन था?
यह तो याद नहीं। लेकिन, वह भी कभी दोनों हाथों से गले नहीं लगाते थे। एक ही हाथ से गले लगाते थे।
लोग कहते हैं कि मुंबई में मैंने बड़ा स्ट्रगल किया। लेकिन आप कहते हैं कि मैं उसे स्ट्रगल नहीं कहता? ऐसा क्यों?
अभिनेता ने कहा, 'स्ट्रगल होता है जब आदमी को खाने के लाले हों। या आपको यह न पता हो कि रात को खाना मिलेगा या नहीं। मुंबई में बहुत सारे लोग सड़कों और झुग्गियों में रहते हैं वह है स्ट्रगल। मैं अपनी मर्जी से एक्टर बनने गया। एक मुकाम हासिल करने में सबको वक्त लगता है। यह एक ऐसा फील्ड है, जहां हर इंसान के अंदर एक अभिनेता है। मुझे ऐसा कोई इंसान नहीं मिला, जो खुद को स्क्रीन पर नहीं देखना चाहता हो। यह हर इंसान की भीतरीय अनुभूति है कि वह खुद को स्क्रीन पर देखना चाहता है। जब मैं अपनी मंजिल अपनी खुशी के लिए वहां गया। एक छत थी, खाना था तो संघर्ष कहां रहा। ऐसा नहीं था कि सड़क पर सो रहा था। मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि मैं क्यों हूं यहां वापस चला जाता हूं। हां सिर्फ मानसिक स्ट्रगल था'।
क्या कभी माता-पिता की तरफ से ऐसा होता था कि आप फोन पर बात करते और वे कहते कि बेटा कुछ और भी देख सकता है?
जयदीप अहलावत ने कहा, 'हां एक वक्त था। मेरे एक दोस्त जाकिर खान (कॉमेडियन) ने बात कही कि मां-बाप कभी आपके स्ट्रगल के खिलाफ नहीं होते हैं, वे बस आपको गरीब नहीं देखना चाहते। माता-पिता को लगता है कि जब तक बच्चा सैटल होता है उन्हें बहुत चिंता होती है। जब बच्चा सेटल हो जाता है तो वे खुश होते हैं। पापा ने फिर भी कभी नहीं किया। मां जरूर कहती थीं कि देख ले कुछ और कर ले'।
बहुत सारे युवा हैं जो एक्टिंग की दुनिया में आना चाहते हैं। क्या राय देंगे?
एक्टर ने कहा, 'जिसने एक्टर बनने का सोचा है, वह कर लेगा। किसी से प्रेरित हो सकते हो आप, लेकिन किसी को देखकर या नकल करके नहीं जाना चाहिए'।
आपको जब पहला ब्रेक मिला? कैसा अनुभव था?
एक्टर ने कहा, 'बहुत अचंभित था मैं, जबकि बहुत छोटा रोल था। जब बहुत वक्त तक आप नकार दिए जाए तो बहुत छोटी चीज भी बड़ी लगती है। पहली फिल्म मुझे 'आक्रोश' मिली। फाइनली जब कॉन्ट्रैक्ट बनता है तो साइनिंग अमाउंट मिलता है। जब आपको चेक मिले और आपके अकाउंट में जो पैसे पड़े हों उससे कम से कम दस गुना ज्यादा हों तो समझ नहीं आता कि इस चेक का करना क्या है? मैं उस चेक को जेब में रखकर चलते-चलते सोच रहा था कि इस पैसे से मैं क्या-क्या करूंगा। मैं अपने फ्लैट की तरफ जा रहा था और आधे रास्ते पैदल ही चला गया। यह भूल गया कि ऑटो भी ले सकता था'।
2010 से 2020 तक के सफर पर बात करें तो आप हर जगह नजर आए। बड़े-बड़े किरदार में नजर आए। लेकिन, क्या ऐसा लगा कि दिख तो रहा हूं लेकिन एक पहचान बनाना बाकी है?
एक्टर ने कहा, 'हां बिल्कुल लगा। मैंने बहुत बड़े-बड़े डायरेक्टर्स के साथ काम किया। एक काम के बाद दूसरे काम में गैप भी बहुत ज्यादा रहा। ऐसे बहुत लंबा वक्त बीता है। लेकिन, जब आप वहां जाते हो तो यही वो पिलर हैं जहां मकान बनता है। तो मुझे लगता है कि नींव काफी मजबूत है'। जयदीप ने आगे कहा, 'बस यही है कि जब आप खाली बैठो तो वह दौर निराशा में नहीं जाना चाहिए। खाली बैठे एक्टर को बहुत तैयारी करनी चाहिए। कई एक्टर्स ने बहुत अच्छा काम किया। फिर गायब हुए और वापस आए। ऐसे में कंसिस्टेंसी बहुत जरूरी है'।
15 मई 2020, वह दिन जब भारत के तमाम लोग अपने घरों में थे। तब 'पाताल लोक' रिलीज हुई और लोगों को हाथीराम चौधरी देखने को मिला। लोगों के फोन आने शुरू हुए होंगे? क्या अनुभव था?
जयदीप अहलावत ने कहा, 'मेरे पास जब यह सीरीज आई, तो कहा गया कि आप इसके लिए हां कहो और आपका कोई ऑडिशन नहीं होगा। मुझे बहुत सरप्राइज हुआ कि मैं आठ-नौ एपिसोड की एक सीरीज करूं और मुझे जांचा-परखा भी न जाए। जिस खूबसूरती से 'पाताल लोक' को लिखा गया, दुनिया में ऐसा कोई एक्टर नहीं जो इस स्क्रिप्ट को मना कर सकता है'।
'पाताल लोक' के बाद क्या कोई ऐसा कॉल आया जब आपको हैरानी हुई हो कि अरे इनका कॉल आया?
एक्टर ने कहा, 'उस वक्त कई दिग्गजों के फोन आए। मनोज (बाजपेयी) भाई हैं, उन्होंने मुझसे करीब 20 मिनट तक बात की। मैं रो रहा था और वो बोले जा रहे थे। उन्होंने कहा कि इसे देखकर मुझे लग रहा है कि मेरी एक्टिंग की वर्कशॉप हो रही है। मुझे लगता है कि इससे सुंदर मुझे कोई क्या बोलेगा'?
लाइफ में सबकुछ मिलना और मिलने के बाद भी खाली लगना। क्या कभी ऐसा लगा?
एक्टर ने कहा, 'नहीं ऐसा नहीं लगा। आप ऊंचाईयां छूते हो, आपके लिए नए रास्ते खुल रहे होते हो। मुझे लगता है कि स्ट्रगल और कठिनाईयां कभी खत्म नहीं होती हैं। उनकी सिर्फ शक्ल बदलती है। कभी ऐसा नहीं लगा कि अब ऊंचाई पर आ गया हूं तो अब खालीपन हो गया है'।
इंटरनेट पर ऐसा सुना कि 'पाताल लोक' सीजन 1 के लिए 40 लाख फीस थी और दूसरे सीजन के लिए 20 करोड़ पहुंच गई। क्या यह सच है?
जयदीप ने कहा, 'नहीं ऐसा नहीं है। पता नहीं किसने छापा। मैंने भी कुछ ऐसा पढ़ा था। किसी ने गलत खबर छाप दी और वह वायरल हो गई'।
रैपिड फायर राउंड में जयदीप अहलावत से ये सवाल पूछे गए-
थिएटर में देखी गई पहली फिल्म
एक्टर ने कहा, 'प्यार का मंदिर'। मिथुन दा की फिल्म थी। मैं पहली बार शहर आया था। हम तीन से छह वाले शो में गए थे। मैं पांच-छह साल का था। मैं जब फिल्म देखकर बाहर आया तो पूरी सड़क रोशनी में नहा रही था। मेरे लिए वह अलग अनुभव था, फिल्म से ज्यादा'।
हाथीराम नहीं तो सिंबा, चुलबल और सिंघम कौन सा किरदार करना पसंद करते?
जयदीप अहलावत ने कहा, 'मु्श्किल है बताना। लेकिन, मैं सिंघम पसंद करता'।
हरियाणा का स्ट्रीट फूड, जो देश के हर कोने में मौजूद हो?
एक्टर ने कहा, 'बाजरे की रोटी, मक्खन और चटनी के साथ, मुझे लगता है वह बाहर निकलना चाहिए'।
एक्टिंग से छुट्टी मिली तो आप क्या करेंगे? खेती करने गांव चले जाएंगे या?
एक्टर ने कहा, 'खेती नहीं करूंगा, लेकिन गांव चला जाऊंगा। आराम करूंगा'।
क्या जयदीप अहलावत को भी पत्नी से सुनने को मिलता है कि गीजर ऑन छोड़ दिया। टॉवल छोड़ दी।
एक्टर ने कहा, 'कौन जयदीप अहलावत? इसमें जयदीप अहलावत क्या...पत्नी के सामने कोई कुछ नहीं है'।
2025 में आपके क्या-क्या प्रोजेक्ट रिलीज होने हैं?
मेरे पास बहुत ज्यादा डेट्स नहीं हैं। अक्तूबर में एक फिल्म है 'इक्कीस', जो रिलीज होगी। इसमें धर्मेंद्र के साथ काम किया है मैंने। इसके अलावा 'हिसाब' फिल्म है, वह भी इस साल रिलीज होगी। 'फैमिली मैन 3' भी उम्मीद है इस साल रिलीज होगा।