वाराणसी (ब्यूरो)। सौ साल पहले संगीत प्रेमियों द्वारा अनौपचारिक रूप से आरंभ किया गया संकट मोचन संगीत समारोह आज वैश्विक कलाकारों के लिए एक प्रतिष्ठित मंच बन चुका है. हर साल अप्रैल में आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में संगीतज्ञों के साथ श्रोताओं की भारी भीड़ उमड़ती है. कोई 50 वर्षों से इस आयोजन का हिस्सा है, तो कोई 70 वर्षों से. छह रातों तक चलने वाले इस भव्य महोत्सव में देशभर से आए कलाकार लगभग 60 संगीत प्रस्तुतियां देते हैं. संकट मोचन हनुमान जी के दरबार में जो भी एक बार हाजिरी लगाता है, वह हर वर्ष इस आयोजन का बेसब्री से इंतजार करता है. यहां न केवल संगीतज्ञों की, बल्कि रसिक श्रोताओं की भी बड़ी संख्या में उपस्थिति होती है. कुछ श्रोता 60 वर्षों से इसे सुनने आ रहे हैं, तो कुछ 80 वर्षों से.
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हनुमान जयंती पर मनाई जाती है
यह उत्सव, जिसकी शुरुआत 1923 में हुई थी, हर साल अप्रैल में हनुमान जयंती के शुभ अवसर पर मनाया जाता है. पंडित जसराज, गिरिजा देवी, पंडित बिरजू महाराज और पंडित केलुचरण महापात्रा जैसे महान कलाकार अतीत में इस प्रतिष्ठित मंच पर अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं. समय के साथ इस आयोजन में कई परिवर्तन हुए हैं. बिना टिकट के एक छोटे से कार्यक्रम के रूप में आरंभ हुआ यह समारोह धीरे-धीरे विस्तृत होता गया. शुरुआत में यह एक शाम को आयोजित होने वाला कार्यक्रम था, जो रात 2 बजे तक चलता था. इसके बाद यह दो रातों, फिर तीन रातों का आयोजन बना और अंतत: अब यह छह रातों तक चलने वाला एक भव्य संगीत उत्सव बन चुका है.
1923 में हुआ था सार्वभौम सम्मेलन
हनुमत दरबार में सार्वभौम रामायण सम्मेलन की शुरुआत 1923 में हुई थी. तीन दिन सार्वभौम सम्मेलन का समापन चौथे दिन संगीत समारोह से होता था. तब उस समय संगीत समारोह का पहला मंच संकट मोचन बाबा की ड्योढ़ी पर सजा था. गर्भगृह के ठीक बाहर कलाकार गायन-वादन करते थे. यह क्रम 25 वर्षों तक चला. रामायण समारोह का पूरा दायित्व बड़े महंतजी निभाते तो संगीत समारोह की कमान तत्कालीन छोटे महंत पं. अमरनाथ मिश्र संभालते. समारोह में श्रोताओं की बढ़ती भीड़ को देखते हुए 1948 में तत्कालीन बड़े महंत पं. बांकेराम मिश्र के निर्देश पर मंदिर परिसर स्थित कुएं की जगह मंच के रूप में इस्तेमाल की जाने लगी. आयोजन की लोकप्रियता का ग्राफ धीरे-धीरे बढऩे लगा. कबीरचौरा और रामापुरा के कलाकारों का जुड़ाव तेजी से बढऩे लगा. पखावज वादक पं. अमरनाथ मिश्र और पं. किशन महाराज की घनिष्ट मित्रता ने आयोजन के स्वरूप को और विस्तार दिया.
मंच पर टूटी ट्यूबलाइट
1966 के कार्यक्रम में पं. गोपाल मिश्र और बीच में पं. किशन महाराज बैठे थे. वादन के दौरान मंच पर अचानक एक ट्यूबलाइट गरम होकर फूट गई. तेज आवाज के साथ शीशे इधर उधर बिखर गए लेकिन दोनों में से किसी कलाकार के चेहरे पर शिकन नहीं आई. जैसे उन्हें पता नहीं चला कि मंच पर कुछ टूटा-फूटा भी है. इस दौर में संगीत समारोह का समापन प्रख्यात तबला वादक पं. कंठे महाराज की प्रस्तुति से होता था. दो दिनों में जितने भी कलाकारों ने प्रस्तुति दी होती. सब के सब आगे की पंक्ति में बैठ कर उनका वादन सुनते थे.
25 साल बाद मंच बदला गया
पहली बार 25 साल बाद मंच बदला, बढ़ती भीड़ को देखते हुए दोबारा अगले 15 साल बाद ही मंच का स्थान बदलने की जरूरत महसूस की गई. संगीत समारोह में बाहर के कलाकारों के आने का सिलसिला 1962 में शुरू होने के बाद इस समारोह की ख्याति भी बनारस से बाहर बढ़ गई. श्रोता ही नहीं कलाकार भी बढऩे लगे. नतीजा यह रहा कि अगले नौ साल में ही पुन: मंच बदलने की जरूरत आन पड़ी. वर्ष 1971 में तीसरी बार मंच का स्थान बदला गया. संगीत समारोह का चौथा मंच गर्भगृह के उत्तर स्थित आंगन के पश्चिमी बरामदे में बनाया गया. तब से आयोजन भी तीन दिन का हो गया.
1962 में तीन बड़े बदलाव
संगीत समारोह के 40वें साल 1962 में तीन बड़े बदलाव हुए. पहला संगीत समारोह के मंच में हुआ. कुएं की जगह से हटाकर मंच व्यवस्था गर्भगृह के दक्षिणी छोर स्थित बरामदे में की गई, जहां इन दिनों महिला दीर्घा है. इसी वर्ष से संगीत समारोह को दो दिन कर दिया गया. तीसरा बदलाव यह था कि पहली बार बनारस से बाहर के कलाकार के रूप में पं. जसराज के बड़े भाई पं. मणिराम बाबा दरबार में आए. 1966 में वायलिन वादक वीजी जोग दूसरे बाहरी कलाकार बने. वीजी जोग के साथ सारंगी पर पं. गोपाल मिश्र (पं. राजन-साजन के चाचा एवं गुरु) ने जुगलबंदी की थी.
70 की दशक में शुरू हुआ महिलाओं का प्रवेश
सत्तर का दशक भी संकटमोचन संगीत समारोह के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहा. इस दशक में न सिर्फ उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों से कलाकारों के आने का क्रम शुरू हुआ. बल्कि अचानक हुए एक वाकये के बाद मंच पर महिलाओं के प्रवेश की राह खुल गई. संकटमोचन संगीत समारोह की स्वर्ण जयंती वर्ष 1973 में हुआ.
पं. जसराज से शुरू हुआ
ठीक एक वर्ष बाद पं. जसराज का प्रवेश हुआ. बेशक बनारस के बाहर के कलाकारों के आगमन का क्रम 1962 से शुरू हो गया था लेकिन यह सिलसिला पं. जसराज की दूरदर्शिता से परवान चढ़ा. अगले ही साल जयपुर के नामी गायक गोविंद प्रसाद जयपुरवाले का आना हुआ. कुछ ऐसा सुखद संयोग बना कि पूर्व काशीनरेश महाराज डॉ. विभूतिनारायण सिंह की प्रेरणा से तुलसी घाट पर ध्रुपद मेला की नींव पड़ी. महाशिवरात्रि पर पक्की गायिकी के मेले ने कई अन्य कलाकारों के संकटमोचन से जुडऩे की राह खोली.
कंकणा बनर्जी ने की थी पहली प्रस्तुति
वर्ष 1978 में कोलकाता की कंकणा बनर्जी संकटमोचन संगीत समारोह में गायन करने वाली पहली महिला कलाकार बनीं. वर्ष 1977 में पं. प्रताप नारायण का गायन हो रहा था. काशी के अरुण चटर्जी उनके साथ संगत कर रहे थे और कंकणा बनर्जी तानपुरा संगत कर रही थी. कंकणा ने अचानक बीच में सुर लगा दिए थे. उनके सुर लगाते ही मंदिर परिसर में श्रोताओं के बीच कानाफूसी शुरू हो गई. कुछ ने महिला ने गा दिया... महिला ने गा दिया... का शोर भी किया, लेकिन प्रो. वीरभद्र मिश्र का संकेत पाकर सभी शांत हो गए और गायन सुनने लगे. गायन के अंत में प्रो. मिश्र ने कंकणा बनर्जी के स्वतंत्र गायन की घोषणा कर दी. गायन में महिलाओं के प्रवेश के नौ साल बाद 1987 में नृत्य में भी अवसर मिला. पहली नृत्यांगना के रूप में संयुक्ता पाणिग्रहि ने ओडिसी की प्रस्तुति की. उसके बाद उमा शर्मा और सोनल मानसिंह का आना हुआ.
1979 में राजन-साजन ने दी प्रस्तुति
पं. राजन साजन के पिता पं. हनुमान प्रसाद मिश्र और चाचा पं. गोपाल मिश्र ने पं. अमरनाथ मिश्र से आग्रह किया कि क्यों न हमारे बच्चों की भी शुरुआत यही से हो. 1979 में पं. राजन-साजन को पहली बार इसी मंच से लॉन्च किया गया. सूर्योदय से पहले दोनों भाई राग ललित गा रहे थे. उस दिन पं. रविशंकर साठ साल के हुए थे. वह दर्शन करने आए. दर्शन के बाद पं. रविशंकर ने मंच पर बैठ कर दोनों भाइयों का गायन सुना था.
इन कलाकारों ने दी प्रस्तुति
तबला वादक किशन महाराज, पं. शारदा सहाय, पं. शामता प्रसाद, पं. लच्छू महाराज, पं. ईश्वर लाल मिश्र, पं. छोटे लाल मिश्र, माणिक वर्मा, नृत्यांगना, कुमार गंधर्व, मालिनी अवस्थी, सोनू निगम, तबला वादक संजू सहाय, भजन सम्राट अनूप जलोटा, पण्डित विश्व मोहन भट्ट, ड्रम वादक शिवमणि, कविता कृष्णमूर्ति, हरीश गंगानी, रविकांत महापात्रा, उल्लास कलाशकर समेत कई नामचीन कलाकार प्रस्तुति दे चुके हैं.
फैक्ट एंड फीगर...
1923 में एक दिवसीय आयोजन से हुई थी संकट मोचन संगीत समारोह की शुरुआत
1965 में पं. जसराज के बड़े भाई पं. मणिराम समारोह में प्रस्तुति देने वाले पहले बाहरी कलाकार थे
1979 में पहली बार संकट मोचन संगीत समारोह में अपने अग्रज पं. साजन मिश्र के साथ शरीक हुए थे. 2019 तक दोनों भाई साथ साथ गाते रहे. 2021 में कोरोना संक्रमण से पं. राजन मिश्र का निधन हो गया.
1978 में कोलकाता की कंकणा बनर्जी ने संकटमोचन संगीत समारोह में गायन करने वाली पहली महिला कलाकार थीं.
संकट मोचन संगीत समारोह की परंपरा काफी पुरानी है. यहां संगीत सुनने के लिए कोई 60 साल से तो कोई 80 साल से आ रहा है. कोई अच्छा संगीत तो कोई अच्छा वादन कर प्रभु के चरणों में समर्पित करते हैं. इस बार 102वां संगीत समारोह का आयोजन होगा. यह परंपरा सौ वर्षों से चली आ रही है. इसी बहाने लोग मंदिर से जुड़ते हैं और हनुमान जी का दर्शन भी करते है.
प्रो. विश्वम्भर नाथ मिश्र, महंत, संकटमोचन
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यह कलाकार लगाएंगे हाजिरी
16 अप्रैल
पंं. हरिप्रसाद चौरसिया (बांसुरी), जननी मुरली (भरत नाट्यम), पंं. राहुल शर्मा (संतूर), डा. येल्ला वेंकटेश्वर राव (मृदंगम), पं. प्रवीण गोडखिंडी (बांसुरी), पं. अजय पोहनकर (गायन), पं. विकास महाराज, विभाष महाराज (सरोद-सितार), श्री रोहित पवार कथक.
17 अप्रैल
लावण्या शंकर (भरतनाट्यम), डा. राजेश शाह सितार, पं. अजय चक्रवर्ती (गायन), विवेक पांड्या (तबला सोलो), पं. पूर्वायन चटर्जी (सितार), सोहिनी राय चौधरी (गायन), मंजूनाथ माधवप्पा श्री नागराज माधवप्पा (वायलिन), पं. नीरज पारिख (गायन).
18 अपैल
यू राजेश (मैंडोलिन) पं. शिवमणि (जूम), श्री सौरव-गौरव मिश्रा (कथक), ओंकार हवलदार (गायन) पं. विश्वमोहन भट्ट, सलील भट्ट (मोहन वीणा-सात्विक वीणा), दीपिका वरदराजन (गायन), पं. राजेंद्र सेजवार (गायन), पं. अभय रुस्तम सोपोरी (संतूर), पं. हरिश तिवारी (गायन).
19 अप्रैल
वी. अनुराधा सिंह (कथक), पं. साहित्य कुमार नाहर -पं. सोतष नाहर (सितार-वायलिन) उस्ताद वसिफउद्दीन डागर (ध््राुपद), पं. जयदीप घोष (सरोद), पं.रामशंकर, स्नेहा शंकर (गायन), प्रभाकर -दिवाकर कश्यप (गायन), विदुषी कंकना बनर्जी (गायन).
20 अप्रैल
नयनिका घोष (कथक), अभिषेक लाहिडी (सरोद), अरमान खां (गायन), पं. तरुण भट्टाचार्य (संतूर), पं. जयतीर्थ मेउन्डी (गायन), शाहना बनर्जी (सितार), पं. संजू सहाय (तबला सोलो).
21 अप्रैल
पं. रतिकांत महापात्र (ओडिसी), पं. उल्हास कसालकर (गायन), उस्ताद मेहताब अली नियाजी (सितार), पं. अनूप जलोटा (गायन), पं. सुरेश गंधर्व (गायन), पं. रोनू मजूमदार- ऋषिकेश मजूमदार (बांसुरी), (पं. साजन मिश्र- स्वरांश मिश्र (गायन).
2025-04-14T18:28:38Z