मूवी रिव्यू: पटना शुक्ला

एक्ट्रेस रवीना टंडन अपनी दूसरी पारी में लगातार दमदार भूमिकाएं चुन रही हैं। अपनी पिछली वेब सीरीज 'कर्मा कॉलिंग' में ग्रे शेड वाली अमीर बॉलीवुड डीवा का किरदार निभाने वाली रवीना, फिल्म 'पटना शुक्ला' में एक आदर्शवादी पत्नी, मां और वकील के रोल में हैं। यह फिल्म शिक्षा घोटाले जैसे जरूरी मुद्दे को मनोरंजक तरीके से उठाने की कोशिश करती है, लेकिन कहानी और पटकथा में धार की कमी के कारण औसत रह जाती है।

'पटना शुक्‍ला' की कहानी

कहानी तन्वी शुक्ला (रवीना टंडन) की है, जो पति सिद्धार्थ (मानव विज) की हर जरूरत का ख्याल रखने वाली परफेक्ट पत्नी और बेटे के स्कूल वैन के पीछे स्कूटी से भागकर टिफिन पहुंचाने वाली परफेक्ट मां है। इसके साथ ही वह सेशन कोर्ट में वकील भी है, मगर औरत होने के कारण उसकी इस डिग्री की कद्र कोई नहीं करता। केस भी उसे ऊटपटांग ही मिलते हैं, जब तक कि गरीब स्टूडेंट रिंकी कुमारी (अनुष्का कौशिक) उससे अपना केस लड़ने की गुजारिश करने नहीं पहुंचती।

रिंकी का दावा है कि यूनिवर्सिटी ने उसकी मार्कशीट बदल दी है। उसके हिसाब से उसे फर्स्ट डिवीजन पास होना चाहिए था, जबकि विश्वविद्यालय ने उसे फेल कर दिया। रिंकी के आत्मविश्वास और न्याय पाने की जिद में तन्वी उसका साथ देती है और उसके केस के लिए दिन-रात एक कर देती है। उसके बाद शिक्षा के मंदिर में भ्रष्टाचार के कई काले सच सामने आते हैं, जिसे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

'पटना शुक्‍ला' का ट्रेलर

'पटना शुक्‍ला' मूवी रिव्‍यू

को-राइटर और डायरेक्टर विवेक बुडाकोटी ने फिल्‍म में शिक्षा घोटाले जैसा अच्छा विषय उठाया है। उन्‍होंने इस गंभीर विषय को मनोरंजक कोर्ट रूम ड्रामा में तब्दील करने की बढ़िया कोशिश की है, लेकिन वह कहानी और पटकथा को धारदार नहीं बना पाए हैं। लेखन में और मेहनत की जरूरत महसूस होती है। केस के घटनाक्रम मेलोड्रमैटिक लगते हैं, वहीं कोर्ट में जोरदार दलीलों की कमी खलती है। फिल्म का ट्रीटमेंट भी नब्बे के दशक वाला लगता है, लेकिन एक्टर्स की सधी हुई एक्टिंग इसे एक बार देखने लायक बना देती है।

तन्वी के रूप में रवीना टंडन परफेक्ट लगी हैं। अनुष्का कौशिक भी अपनी ईमानदार परफॉर्मेंस से दिल जीत लेती हैं। जज के रूप में अब हमारे बीच नहीं रहे सतीश कौशिक की सहज अदाकारी भावुक कर देती है। वहीं, मानव विज, राजू खेर, जतिन गोस्वामी ने भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। हालांकि, बड़े कॉरपोरेट वकील के रोल में चंदन रॉय सान्याल और भ्रष्ट नेता के रोल में जतिन के किरदार को सही ढंग से नहीं उभारा गया है।

तकनीकी पहलुओं की बात करें, तो फिल्म का प्रोडक्शन डिजाइन औसत है। सैम्युल शेट्टी और आकांक्षा नंद्रेकर के संगीत निर्देशन में कोई ऐसा गाना नहीं है, जो याद रह पाए। विनी राज एडिटिंग टेबल पर कुछ और सीन्स में कांट-छांट कर सकती थीं। हां, नेहा पारती मटियानी का कैमरा 'पटना शुक्ला' की मिडिल क्लास दुनिया को अच्छे से स्टैबलिश करता है।

क्यों देखें- शिक्षा घोटाले की कलई खोलती यह फिल्म रवीना टंडन की कड़क परफॉर्मेंस के लिए देख सकते हैं।

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